राफेल सौदे पर कैग की रिपोर्ट संसद में पेश, विपक्ष ने कहा- तथ्यों कोे छुपाने की हुई है कोशिश
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : राफेल पर जिस सीएजी रिपोर्ट का इंतजार काफी वक्त से किया जा रहा था वह सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए कुछ न कुछ खास लेकर आया है। इस रिपोर्ट में दोनों पक्षों के लिए परेशानी खड़े करने की पर्याप्त वजहों को शामिल किया गया है। रिपोर्ट से यह भी साफ हो गया है कि यह लड़ाई अभी थमने वाली नहीं है। बजट सत्र के आखिरी दिन सदन के पटल पर पेश की गई सीएजी रिपोर्ट में जो सबसे बड़ी बात कही जा रही है वह यह है कि एनडीए के कार्यकाल में 36 राफेल की 7.87 बिलियन यूरो में तय हुई डील यूपीए के कार्यकाल में साल 2012 में हुई डील के मुकाबले 2.86 प्रतिशत सस्ती है।
रक्षा संबंधी संसद की परामर्श समिति के सदस्य और कांग्रेस सांसद प्रदीप भट्टाचार्य ने इस खरीद के मामले में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट को अधूरी बताते हुए कहा है कि इसे अभी दुरुस्त किये जाने की जरूरत है। भट्टाचार्य ने बुधवार को संसद में कैग की रिपोर्ट पेश होने के बाद कहा, रिपोर्ट को एक नजर देखने के बाद फौरी तौर पर ऐसा लगता है कि सौदे का सही आकलन हुआ ही नहीं है। सही आकलन क्यों नहीं हुआ, मुझे लगता है कि कुछ तथ्यों को छुपाने के लिए कोई बंदोबस्त हुआ है। उन्होंने सरकार पर तथ्यों को छिपाने का आरोप लगाते हुए कहा, या तो रक्षा मंत्रालय द्वारा पूरे दस्तावेज कैग के पास नहीं पहुंचाए गए या पूरे दस्तावेज पहुंच गए तो तथ्यों को क्यों छुपाया गया, यह हमारी समझ से परे है। ऐसे में मुझे लगता है कि इस रिपोर्ट को थोड़ा दुरुस्त करना जरूरी है।
राफेल सौदे को लेकर कैग की रिपोर्ट पर केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि महाझूठबंधन का झूठ बेनकाब हो गया और सत्य की जीत हुई है क्योंकि संसद में पेश नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के अनुसार, एनडीए सरकार के तहत हुआ सौदा पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के दौरान इस सौदे पर हुई वार्ता पेशकश की तुलना में 2.86 प्रतिशत सस्ता है। जेटली ने ट्वीट किया, ‘सत्यमेव जयते.. सत्य की हमेशा जीत होती है। राफेल मुद्दे पर कैग की रिपोर्ट ने इसकी पुष्टि की है।’ उन्होंने कहा कि 2016 बनाम 2007… कम कीमत, त्वरित आपूर्ति, बेहतर रखरखाव, महंगाई के आधार पर कम वृद्धि।
कांग्रेस सहित विपक्ष पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा, यह नहीं कहा जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट गलत है, कैग गलत है और केवल परिवार सही है। जेटली का यह बयान ऐसे समय में आया है जब आज कैग की रफाल मुद्दे पर रिपोर्ट संसद में पेश की गई है। इस मुद्दे पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सहित विभिन्न विपक्षी दल सरकार पर निशाना साधते रहे हैं। कांग्रेस एवं अन्य विपक्षी दल राफेल सौदे में कथित घोटाले का आरोप लगाते हुए इसकी संयुक्त संसदीय समिति से जांच कराने की मांग करते रहे हैं। संसद सत्र के दौरान भी यह मुद्दा दोनों सदनों में छाया रहा और कार्यवाही बाधित हुई। माकपा नेता सीताराम येचुरी ने भी राफेल सौदे पर आयी कैग रिपोर्ट की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि भारतीय वार्ता दल (आईएनटी) में शामिल रक्षा मंत्रालय के तीन वरिष्ठ अधिकारियों ने आठ पेज का एक विरोध पत्र देकर नई डील को यूपीए सरकार द्वारा की गई डील से बेहतर बताने और रफाल विमानों को जल्दी मुहैया कराने के दावों पर आपत्ति जताई थी।
सीएजी रिपोर्ट के कुछ अहम तथ्य
1. कैग की 141 पेज की रिपोर्ट को संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा में पेश किया गया। रिपोर्ट में कैग ने तुलनात्मक विश्लेषण किया है। कैग ने रक्षा मंत्रालय के उस तर्क को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि 2016 में 36 राफेल विमानों की डील 2007 के प्रस्ताव की तुलना में 9 प्रतिशत सस्ती थी।
2. कैग रिपोर्ट के अनुसार भारत और फ्रांस के बीच हुई राफेल डील पहले की तुलना में 2.86 फीसदी सस्ती पड़ी।
3. बेहतर शर्तों और मूल्यों के साथ भारत और फ्रांस के बीच 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीद पर सहमति बनी थी। इस डील में 'मेक इन इंडिया' अभियान को समर्थन देने के लिए ऑफसेट प्राप्त करना भी शामिल था।
4. कैग रिपोर्ट में 2007 के टेंडर और 2016 के अनुबंध को तालिका में दर्शाया गया है और यह पहले प्रस्ताव की तुलना में सस्ता है। कैग के अनुसार 2007 के पिछले प्रस्ताव में दसॉ एविएशन ने परफॉर्मेंस ऐंड फाइनेंशियल वॉरंटी की बात कही थी। जो कुल अनुबंध की 25 फीसदी राशि थी।
5. मौजूदा अनुबंध में विमानों की डिलीवरी पुराने अनुबंध की तुलना में एक महीने पहले होगी। 2007 के अनुबंध के अनुसार भारत की जरूरतों के हिसाब से तैयार विमान 72 महीनों में भारत को सौंपे जाने थे जबकि 2016 के अनुबंध के अनुसार यह 71 महीने में ही तैयार हो जाएंगे।
6. कानून मंत्रालय के सलाह पर रक्षा मंत्रालय ने फ्रांस सरकार से सॉवरन गारंटी मांगी थी। हालांकि, फ्रांस सरकार ने केवल 'लेटर ऑफ कम्फर्ट' दिया था।
7. भारतीय वायु सेना ने एयर स्टाफ क्वांटिटीव रिक्वायरमेंट को सही तरीके से नहीं बताया जिसके कारण कोई भी वेंडर एएसक्यूआर पर खरा नहीं उतर पाया था।
8. खरीद प्रक्रिया के दौरान एएसक्यूआर को जल्दी-जल्दी बदला गया, जिसके कारण तकनीक और प्राइस आकलन के दौरान दिक्कतों का सामना करना पड़ा एवं प्रतिस्पर्धात्मक टेंडरिंग पर असर पड़ा। राफेल खरीद में देरी के पीछे एक अहम कारण यह भी रहा।
9. पहले 18 राफेल लड़ाकू विमानों का डिलीवरी शेड्यूल 126 राफेल विमानों की तुलना में बेहतर। यानी शुरुआती 18 राफेल विमान पिछली डील के मुकाबले 5 महीने पहले ही भारत में आ जाएंगे।