संघ का अविश्वास
हाल ही में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ओर से दो ऐसे बयान आए हैं जो देश के संविधान के प्रति उसके अविश्वास को दर्शाते हैं । सरसंघचालक मोहन भागवत ने डंके की चोट पर कह डाला है कि उन्हें देश की न्याय व्यवस्था पर विश्वास नहीं है। उन्होंने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उंगली उठाई है तो एक बार फिर राम मंदिर के जरिए हमारे संविधान को चुनौती देने का काम किया है। उन्होंने कहा है कि राम मंदिर पर अलग कानून बनाने की जरूरत है। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने राम मंदिर को लेकर कहा कि राम मंदिर का बनना गौरव की दृष्टि से आवश्यक है, मंदिर बनने से देश में सद्भावना व एकात्मता का वातावरण बनेगा। तो क्या संघ प्रमुख के इस बयान को सरकार और कोर्ट पर दबाव बनाने की राजनीति ना करार दिया जाए?
सरसंघचालक की न्याय से टूटी आस, कहा- राम मंदिर निर्माण को कानून लाए मोदी सरकार
राम मंदिर निर्माण को लेकर आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने केंद्र की मोदी सरकार से अपील की है कि वह कानून बनाकर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करे। राम मंदिर का निर्माण स्वगौरव की दृष्टि से जरूरी है और मंदिर बनने से देश में सद्भावना एवं एकात्मता का वातावरण बनेगा।