'अनोखा राष्ट्रवाद' से परहेज करिए सरकार
किरण राय
कश्मीर में यूरोपीयन संघ के सांसदों को सैर-सपाटा की इजाजत देना, लेकिन भारतीय सांसदों और नेताओं को एयरपोर्ट से बाहर निकलने नहीं देना, क्या यह मोदी सरकार का अपना अनोखा राष्ट्रवाद नहीं है? भारत सरकार का यह कदम न सिर्फ भारत और भारतीय लोकतंत्र की खराब तस्वीर को पेश करता है, बल्कि नए दोस्त बनाने की जगह ज्यादा दुश्मन पैदा करने वाला है।
दरअसल, यूरोपीय संसद के करीब दो दर्जन धुर दक्षिणपंथी सदस्यों को कश्मीर की निजी यात्रा के लिए तैयार करने का आइडिया भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल का था। इस संबंध में मीडिया में जो रिपोर्ट्स छपी हैं उसके मुताबिक, डोभाल ने अपनी सोच को मूर्त रूप देने के लिए भारतीय मूल की मादी शर्मा नाम की महिला उद्यमी द्वारा चलाए जाने वाले ब्रसेल्स स्थित थिंक टैंक वेस्ट-विमेंस इकोनॉमिक एंड सोशल थिंक टैंक से संपर्क किया था। इस दौरे के पीछे जो भी लोग थे वह कतई नहीं चाहते थे कि इन अति विशिष्ट अतिथियों में से कोई पहले से तय किए गए कश्मीरियों के अलावा किसी अन्य के साथ सहज तौर पर मुलाकात करें।
सवाल यह उठता है कि इन विदेशी सांसदों के दौरे के पीछे मकसद क्या था? निश्चित रूप से प्रधानमंत्री कार्यालय- खासतौर पर एनएसए अजित डोभाल जो खुद को सबसे बुद्धिमान व्यक्ति के तौर पर पेश करते हैं ने यह सोचा होगा कि इस नौका विहार के लिए विशेष तौर पर चुने गए सम्मानित विदेशियों के सामने कश्मीर की सामान्य हालात की तस्वीर पेश करके वे अपनी कश्मीर नीति को लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया की नकारात्मक रिपोर्टिंग का जवाब दे सकते हैं। लेकिन ऐसा करने से पहले वह इस बात को भूल गए कि जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने के बाद वहां हालात का जायजा लेने गए कांग्रेस नेता राहुल गांधी समेत अन्य विपक्षी नेताओं को एयरपोर्ट से बाहर नहीं निकलने दिया गया था और उन्हें वहीं से वापस कर दिया गया था।
कहने का मतलब यह कि भारतीय सांसद और विपक्षी दलों के नेता सुप्रीम कोर्ट की इजाजत के बगैर श्रीनगर की यात्रा नहीं कर सकते हैं और इस पर भी उन्हें यह कहा जाता है कि वे स्थानीय लोगों से संवाद तक नहीं कर सकते हैं। दूसरी तरफ सरकार को यूरोपीय सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल को कश्मीर घाटी जाने की इजाजत देने में कोई समस्या नहीं है। यह कैसा लोकतंत्र है? यह कैसा न्याय तंत्र है? सरकार शायद यह भूल गई कि लोकतंत्र में ऐसे बनावटी दौरे नहीं होते हैं। आखिर कश्मीर में ऐसे हालात क्यों पैदा किए गए कि आपको विदेशी सांसदों के नजरिये का सहारा लेना पड़ा। ज्यादा बेहतर यह होता कि कश्मीर में हालात को सामान्य करने के लिए इंटरनेट सेवाओं को बहाल किया जाता, लोगों को यात्रा करने और संवाद करने दिया जाता, सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा किया जाता, राजनीतिक दलों और उनके नेताओं को उसी तरह से काम करने दिया जाता जैसे कि उन्हें किसी वास्तविक लोकतंत्र में करना चाहिए। लेकिन नहीं, सरकार ऐसा कुछ भी करने में भरोसा नहीं कर रही है।